पंचकर्म चिकित्सा
पंचकर्म
आयुर्वेद चिकित्सा
पद्धति की विशिष्टता
है जो किसी चिकिंत्सा
पद्धति में नहीं
है अनेक जटिल एंव
असाध्य व्याधियां
जो केवल औषधोपचार
से उपचारित नहीं
हो पाती, वे पंचकर्म से
सहजता से ठीक की
जा सकती है।
इस
चिकित्सा में प्रमुख
रूप से स्नेहन, स्वेदन, वमन, विरेचन, वस्ति, नस्य व रक्त
मोक्षण आदि क्रिया-कलापों
के माध्यम से शरीर
व मन में स्थित
विकृत दोषों को
बाहर निकाला जाता
है। जिससे दुबारा
रोगों की उत्पति
न हो।
स्नेहन-स्वेदनः- ये दोनों
प्रक्रियाएं पूर्व
कर्म कहलाती हैं, जो कि पंचकर्म
की प्रत्येक क्रिया
से पहले आवश्यक
रूप से की जानी
चाहिए, इसके माध्यम
से रोग उत्पादक
दोषों को शरीर
के अंगों से शिथिल
कर कोष्ठ में लाया
जाता हैं, कई बार अल्प
दोष की स्थिति
होने पर रोगी को
केवल इन पूर्वकर्म
से लाभ हो जाता
है।
वमन-कर्मः- यह क्रिया
प्रमुख रूप से
कफज रोगों व वात
कफज रोगों के लिये
की जाती है। जिसमें
उरः प्रदेश, सिर, अस्थि संधिगत
व श्लेष्म स्थानों
में उत्पन्न विभिन्न
कफज रोगों के संशोधन
हेतु आवश्यक होता
हैं।
विरेचन कर्मः- यह क्रिया
विकृत पित्तज दोषों
के लिये की जाती
हैं, जिसमें
मुख्य रूप से गुदा
मार्ग से दोषों
को निर्धारित मापदण्डों
के तहत क्रमशः
प्रवर, मध्यम, अवर के 30, 20 व 10 वेग लाकर
रोगी को दोष मुक्त
करवाया जाता है।
वस्तिः- इस कर्म
को आयुर्वेदीय
वैज्ञानिकों ने
आधी चिकित्सा कहा
है। यह प्रमुख
रूप से 80 प्रकार के वातज
रोगों को ठीक करने
के लिये प्रयोग
में लायी जाती
है। साथ ही इसके
प्रमुख प्रकार
आस्थापन, अनुवासन, कालवस्ति, क्रमवस्ति, योगवस्ति
तथा मात्रावस्ति
आदि का रोग व रोगीनुसार
प्रयोग कर लाभ
पहुंचाया जाता
है।
नस्यः- पंचकर्म
की इस क्रिया के
माध्यम से सिर
में स्थित दोषों
को नासा मार्ग
से बाहर निकाल
कर रोगी को लाभ
पहुंचाया जाता
है। इसके प्रमुख
प्रकारों में नस्य, प्रतिमर्शनस्य, नावन, अवपीडन
नस्य प्रमुख हैं।
जिनका रोग व रोगी
अनुसार चयन कर
उपयोग में लाया
जाता है।
रक्त मोक्षणः- पंचकर्म
की इस विधा द्वारा
शरीर में स्थित
दूषित रक्त को
बाहर निकाला जाता
हैं जिसमें दोष
व रोगी की प्रकृति
के अनुसार जलौकावचरण, श्रृंग, अलावू आदि
के माध्यम से दोष
अनुसार चयन कर
रोग को ठीक किया
जाता है।
अतः
राजस्थान में आयुर्वेद
पंचकर्म चिकित्सा
पद्धति को अधिकाधिक
उपयोगी बनाने के
लिए वर्ष 2013-14 से चरणबद्ध
तरीके से कुल 36 पंचकर्म
केन्द्र संचालित
किये जा रहे है।
जिला जयपुर में
तीन केन्द्र संचालित
किये जा रहे है।
वर्तमान में प्रतिवर्ष
1.00 लाख रूपये
औषधियों हेतु उपलब्ध
कराये जाते है, तथा मशीनरी
एवं उपकरणों पर 2.00 लाख रूपये केन्द्र
खुलने पर उपलब्ध
कराये जाते है।